जनरंजन : किरोड़ी बाबा का इस्तीफा अबूझ पहेली बना, निर्णय से क्या बदलेंगे राजनीतिक समीकरण!
भाजपा के दिग्गज नेता व राज्य के कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा उर्फ किरोड़ी बाबा को इस्तीफा दिए हुए चार महीनें हो गये। उनके इस्तीफे पर अभी तक न तो मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कोई निर्णय किया है और न ही पार्टी नेतृत्त्व ने। स्वयं किरोड़ी बाबा ने भी अपना इस्तीफा वापस नहीं लिया है। गाहे बगाहे वे अपना इस्तीफा देने की बात को दोहरा भी देते हैं। मगर सीएम और भाजपा ने तो इस विषय पर पूरा ही मौन साध रखा है, उससे उनका इस्तीफा अबूझ पहेली बन गया है। राज्य के राजनीतिक इतिहास की यह पहली घटना है जब एक मंत्री के इस्तीफे पर इतने लंबे समय बाद भी किसी तरह का कोई निर्णय नहीं हो सका है। सब लोग इस बात से आश्चर्यचकित हैं।
किरोड़ी बाबा ने जब इस्तीफा दिया तो उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने मिलने के लिए दिल्ली बुलाया। दोनों में बात भी हुई। बाबा ने बताया कि 10 दिन में नड्डा फिर बुलाएंगे, उसके बाद कोई निर्णय होगा। वो अवधि तो आज तक पूरी नहीं हुई। उसके बाद राज्य के भाजपा नेताओं, नये बने अध्यक्ष मदन राठौड़ ने भी कहा कि वे जल्दी ही पद संभाल लेंगे। वो जल्दी भी बहुत लंबी हो गई। बाबा कभी कोई तो कभी कोई बयान देकर इस सवाल को और उलझा देते हैं। अभी तक उन्होंने भी तस्वीर साफ नहीं की है। सरकारी कामकाज भी वे पूरी तरह से नहीं करते। सुविधाए भी नहीं लेते। विभाग की समीक्षा बैठक जब सीएम ने ली तो उसमें भी नहीं गये।
इसी बीच विधानसभा उप चुनाव आ गये। उनकी ईच्छा के अनुरूप पार्टी ने उनके भाई जगमोहन को टिकट भी दे दिया। सोचा बाबा अब ट्रेक पर आएंगे और मंत्री के रूप में काम शुरू कर देंगे। सब कुछ उलटा हो गया।
बाबा के भाई जगमोहन उप चुनाव में हार गये। ये बड़ा झटका था। बाकी उप चुनावों में भाजपा ने बाजी मारी पर दौसा सीट जो बाबा के लिए प्रतिष्ठा की सीट थी, वो हार गये। हार से बाबा इतने दुखी हुए कि हार का पूरा ठीकरा जयचन्दों यानी पार्टी के नेताओं पर ही फोड़ दिया। इस पर पार्टी के नेता ही उनके सामने आ खड़े हो गये। उन्होंने ही बाबा पर आरोप लगाने शुरू कर दिए। इस उप चुनाव की हार के बाद भी इस्तीफे पर कुछ भी स्पष्ट नहीं हुआ है। जबकि सरकार के एक साल के जश्न में जब पीएम मोदी आये तो बाबा वहां जरूर दिखे।
बाबा ने अपने स्वभाव के अनुसार उसके बाद फिर से जनता के मुद्दे उठाने शुरू कर दिए। मंत्री के रूप में सरकार का हिस्सा होने बाद भी वे एसआई भर्ती रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं। आरोप लगाने से भी नहीं चूक रहे। पुलिस के सामने भी जनता के पक्ष में अड़ के खड़े हो रहे हैं। सरकार की तरफ से भी उन पर कोई टिप्पणी नहीं की जा रही है। बाबा अब सरकार के नहीं अधिकतर समय जनता के बीच ही रहते हैं।
पूर्वी राजस्थान में किरोड़ी बाबा का जबरदस्त वर्चस्व है, ये सर्वविदित है। इस बात को भाजपा भी जानती है। इसी कारण वो कुछ भी निर्णय करने से हिचकिचा रही है। वहीं बाबा को अपनी बात का धनी माना जाता है और इसी कारण उनकी बड़ी फॉलोइंग है। इस कारण से इस्तीफा अबूझ पहेली बना हुआ है। क्योंकि राज्य की राजनीतिक गणित कहती है कि किरोड़ी बाबा के इस्तीफे पर जो भी निर्णय होता है, उसका राजनीति पर बड़ा व दूर तक असर पड़ेगा।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।